Sunday 23 June 2013

The Earnest and Greatest - My Grandfather


पुनर्जीवन


मन्‍द समीर के झोंके का स्‍पर्श होते ही सुरजीत के मन में राहत का संचार होने लगा। अब तक वह चिलम में चुगल के ऊपर तम्‍बाकू और उस पर उलटा चुगड़ा रख कर आग रखने लग चुका था। आग में चिलम भर कर वह उठ खड़ा हुआ। बाएं पंजे पर शरीर का भार डालते हुए घूम कर एक निगाह बैठक की ओर डाली, फिर तारों से झिलमिलाते विस्‍तृत व्‍योम को देखते-देखते एक दीर्घ सांस लेकर उसने कहा- हे राम।
वह दाएं हाथ में चिलम थामे सीधा बैठक में चला गया जहां सावण राम, अर्जुन दर्जी और गंगाराम बैठे बतिया रहे थे। सुरजीत एक ओर लिटाए हुए पंडित शीशराम के मृत शरीर को देखते ही गंगाराम की ओर बायां हाथ उठा कर आश्‍चर्य से बोला- दादा जरा देखो तोजब मैं चिल्‍म भरने गया था बड़े बाबा की लातें सीधी थी और अब गोडे मुड़े हुए हैं।
इतने में वह हुक्‍के पर चिलम जमा चुका था।
    सुरजीत की बात सुनते ही आश्‍चर्य से वे तो तीनों उछल पड़े। शाम पौने सात बजे शरीर त्‍याग चुके पंडित शीशराम की मृत देह की तरफ लपके, वस्‍त्र हटाया और छाती में हृदय की धड़कन को सुनने का प्रयास करने लगे। पुनर्जीवन के कई किस्‍से सभी ने सुने हुए थे। सब के मन में आशा-दीप जलने लगे।
अर्जुन ने कहा- हाथ पैरों को रगड़ो। चारों ने हाथ पैर तथा छाती मसलना शुरू किया। सबके हाथ सकारात्‍मक सोच के साथ चल रहे थे। गंगाराम के मन में उत्‍साह निरन्‍तर बढ़ रहा था। पिता के जीवन से बढ कर क्‍या चाहिए। करीब दस मिनट के बाद उसने अपना दायां कान पिता की छाती से लगाया तो कान में शीशराम के हृदय की धमक आ चुकी थी। वह धमक बढ़ने लगी और करीब पचीस मिनट के उपरान्‍त पंडित शीशराम के शरीर में ऊर्जा का प्रवाह तीव्र हुआ, वह एक झटके के साथ बैठ गया।
उसने उन चारों को देखा, पहचाना तथा गंगाराम से बोला- भाई गंगाराम, जरा पंचाग देखो। पंचक लगे हुए हैं।
गंगाराम जाकर दूसरे कमरे से श्रीमार्तण्‍ड पंचाग उठा लाया।
देखकर बोला-पूर्व संध्‍या में आपकी मृत्‍यु से कुछ मिनट पहले ही पंचक शुरू हुए हैं। पिता-पुत्र की निगाहें मिली।
शीशराम बोला- बेटा गंगाराम, धर्मराज कहते हैं कि तुम तो देवतुल्‍य ब्राह्मण हो, तुम्‍हें मैं पंचकों में नहीं ले जा सकता। इसलिए अब तो मैं पांच दिन और जीने के लिए वापस आ गया हूं । सब भगवान का धन्‍यवाद करने लगे।
    रात्रि का तीसरा पहर खतम होने को था। इसमें भोगी, रोगी और योगी- यही तीन प्रकार के लोग जागते हैं, बाकी सब सोते हैं। और मृत्‍युरूपी चिर निद्रा से अभी-अभी जागे पंडित शीशराम इन में से निश्‍चय ही तीसरी श्रेणी के हैं। अस्‍सी साल की उम्र तक इनका अधिकांश समय पूजा-पाठ से संबंधित कार्यों में गुजरा है। कुल परम्‍परा के अनुसार हर तरह की मान्‍यताओं एवं मर्यादाओं का पालन करना इनका स्‍वभाव रहा है। इसलिए पंचकों में शरीर त्‍याग कर भी पुनर्जीवन पा जाना सम्‍भव है।
मन में आनन्‍द का समावेश लिए सुरजीत, अर्जुन और सावण राम कुछ समय और वहीं रुके फिर अपने-अपने घर जाने के लिए उठने को तैयार हुए।
तभी शीशराम से उसके बेटे गंगाराम ने कहा, आप कहो तो तुला दान करवा दें। शीशराम ने हां कही और अगले ही दिन गंगाराम ने पिता के हाथ से दान कार्य सम्‍पन्‍न करवा दिया। परिवार के सब सदस्‍य बहुत खुश थे क्‍योंकि संयुक्‍त परिवार में घर के बड़े सदस्‍य पूरे परिवार के लिए वट वृक्ष की भांति होते हैं। उनकी छत्र-छाया और आशीर्वाद हमेशा  कल्‍याणप्रद ही साबित होता है।
    गंगाराम को यह लग रहा था कि जैसे ही पंचक समाप्‍त होंगे उसके पिता का स्‍वर्गवास हो जाएगा। इस आशंका के कारण उसने अपने सारे प्रोग्रामों को पितृसेवा हेतु तिलांजलि दे दी। हर समय स्‍वयं पिता का ध्‍यान रखने लगे । पंचक पूरे होने के बाद भी तीन दिन निकल गए परन्‍तु शीशराम का बुलावा नहीं आया। क्‍या धर्मराज के हिसाब-किताब में भी चूक हो गई। क्‍या पंचक का अर्थ पांच विशेष दिनों की अवधि के अतिरिक्‍त कुछ और भी है । क्‍या कुछ और शुभ कर्म अभी पिताजी के हाथ से होने बाकी हैं । क्‍या उनका सांसारिक लेन-देन अभी पूरा नहीं हुआ है । क्‍या मृत्‍यु का समय ऐसे भी टल सकता है। अनेकानेक शंकाएं गंगाराम के मानस पटल पर बार-बार प्रहार करने लगी।
वह अपने पिता के सामने गया तो शीशराम बोला- बेटा मेरे सामने बैठ कर मेरह बात सुनो । धर्मराज तो हमेशा न्‍याय की ही बात करते हैं, पर हम ही न समझ पाएं, ये तो हो सकता है ना। धर्मराज ने जब मुझे देवतुल्‍य मान लिया है तो बात की तह तक जाने के लिए हमें ज्‍योतिष की शरण में आना होगा क्‍योंकि इस बात का जवाब हमें हमारे ज्‍योतिष में ही मिलेगा।
चारपाई पर गंगाराम सामने आकर बैठ गया ।
शीशराम बोला- हमारे ज्‍योतिष एवं दर्शन ग्रंथों में बताया गया है कि सूर्य के उत्‍तरायण के साथ देवताओं का दिन और दक्षिणायन के साथ रात प्रारम्‍भ होती है । इस हिसाब से उनका एक दिन और रात हम पृथवीवासियों के एक साल के बराबर बनता है तथा पंचक यानि पांच दिन हमारे पांच सालों के बराबर होते हैं। अब जब धर्मराज ने  मुझे देवतुल्‍य मान ही लिया है तो मुझे देवों के पंचक यानि संसारिक प्राणियों के पांच साल तक तो जीवित रहना ही चाहिए। अत: मेरी चिंता छोड कर अपना कर्म पूरा करो ।
गंगाराम भी ज्‍योतिष और कर्मकाण्‍ड जानता था। अत: पिता की बात बिना किसी तर्क के समझ गया।
वह बोला- पिताजी, क्‍या पुनर्जीवन के इस पुण्‍य काल में आप धार्मिक दृष्‍टि से कुछ करना चाहेंगे।
शीशराम ने कहा- सबसे पहले तो मैं किसी ऐसे विद्वान ब्राह्मण को गाय दान करना चाहूंगा जो ईमानदार, मेहनती, व्‍यसनरहित, कर्तव्‍य परायण होने के साथ धार्मिक-सामाजिक मान्‍यताओं के अनुसार जीवन यापन करता हो । और गाय चालीस से सौ दिनों के मध्‍य ब्‍याई हुई होनी चाहिए। वह जवान और स्‍वस्‍थ हो, सवत्‍सा हो, श्‍वेत वर्ण की हो, बछडा भी श्‍वेत रंग का ही हो । अच्‍छा हो ये कर्म चालीस दिनों के भीतर सम्‍पन्‍न हो जाए ।
    गंगाराम ने एक माह के भीतर पिता की उक्‍त आकांक्षा की पूति सहर्ष करवा दी और पांच साल पिता के सानिध्‍य का अपूर्व सुख प्राप्‍त किया।
पांच साल बाद वही महिना, सूर्य की वही गति । चंद्रमा ने उन्‍ही राशियों, नक्षत्रों को पार किया । पंचक समाप्‍त हुए और शीशराम संध्‍याकाल में ही ब्रहमलीन हो गए । इसे प्रभु कृपा कहिए या अपने सत्‍कर्मों का सुफल या दोनो ही।  

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