Sunday 23 June 2013

Maa Tara Mansa


    दो गुलाब  

चिडियानाथ की पहाडी पर बना और शान से खडा मेहरानगढ का किला जोधपुर आने वाले देशी-विदेशी पर्यटकों को तो आकर्षित करता ही है , शक्‍ति के उपासकों का भी मनभावन स्‍थान है । राजाराम मेघवाल को न तो जोधपुर का राजघराना भूला सकता है न ही उसके वंशज क्‍योंकि इस किले की नींव में उसे जिंदा चिना गया था । उसका बलिदान आज भी उतना ही सम्‍मानीय है जितना तब था ।
किले के अंतिम छोर पर निर्मित मां चामुण्‍डा के मंदिर का श्रद्धालुओं के गमनागमन के आकर्षण का केंद्र बनना कोई आश्‍चर्य की बात नहीं है । राव जोधा जी द्वारा इस नगर की स्‍थापना के साथ ही इस मंदिर का निर्माण सम्‍पन्‍न हुआ था। यहां पर माता चील के रूप में आई थी- ऐसी मान्‍यता प्रचलित है । जोधपुर रियासत के ध्‍वज में चील को उसी प्रतीक के रूप में शामिल किया गया था । यहां के निवासी जब किसी विशेष प्रयोजन से घर से निकलते हैं तब उन्‍हें यदि चील के दर्शन हो जाएं तो उसे कार्य सिद्धि का परिचायक माना जाता है । किला, संग्रालय देखने आए लोग या चामुण्‍डा दर्शन को आए भक्‍तगण चील-दर्शन को अपना सौभाग्‍य समझते हैं ।
                 यों तो माता के इस मंदिर में लोगों का तांता सालभर लगा रहता है परंतु नवरात्रि में तो सावन की मेघमालाओं की भांति जन-समूह उमड-घुमड कर यहां पदचाप करता है । और ऐसा कौन है जो मां के पास आकर खाली हाथ जाएगा । फिर मां के पास आने या मिलने के लिए कोई कारण, काम या बहाना चाहिए क्‍या, बिल्‍कुल नहीं। चाहिए तो केवल भाव, श्रद्धा, इच्‍छा । जो जितना भाव विभोर होकर आया उतना ही अच्‍छा वर या फल पा गया । अनेक भक्‍तों ने मातृ-कृपा के अनेकानेक रोचक, रोमांचक एवं चमत्‍कारपूर्ण तथ्‍यों का वर्णन यत्र-तत्र किया है । अपने अनुभवों से अपने मित्रों एवं प्रियजनों को आनंदित किया है ।

      

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