चिडियानाथ
की पहाडी पर बना और शान से खडा मेहरानगढ का किला जोधपुर आने वाले देशी-विदेशी
पर्यटकों को तो आकर्षित करता ही है , शक्ति के
उपासकों का भी मनभावन स्थान है । राजाराम मेघवाल को न तो जोधपुर का राजघराना भूला
सकता है न ही उसके वंशज क्योंकि इस किले की नींव में उसे जिंदा चिना गया था । उसका
बलिदान आज भी उतना ही सम्मानीय है जितना तब था ।
किले के अंतिम छोर पर निर्मित मां चामुण्डा के
मंदिर का श्रद्धालुओं के गमनागमन के आकर्षण का केंद्र बनना कोई आश्चर्य की बात
नहीं है । राव जोधा जी द्वारा इस नगर की स्थापना के साथ ही इस मंदिर का निर्माण
सम्पन्न हुआ था। यहां पर माता चील के रूप में आई थी- ऐसी मान्यता प्रचलित है ।
जोधपुर रियासत के ध्वज में चील को उसी प्रतीक के रूप में शामिल किया गया था ।
यहां के निवासी जब किसी विशेष प्रयोजन से घर से निकलते हैं तब उन्हें यदि चील के
दर्शन हो जाएं तो उसे कार्य सिद्धि का परिचायक माना जाता है । किला,
संग्रालय देखने आए लोग या चामुण्डा दर्शन को आए भक्तगण चील-दर्शन को अपना सौभाग्य
समझते हैं ।
यों तो माता के
इस मंदिर में लोगों का तांता सालभर लगा रहता है परंतु नवरात्रि में तो सावन की
मेघमालाओं की भांति जन-समूह उमड-घुमड कर यहां पदचाप करता है । और ऐसा कौन है जो
मां के पास आकर खाली हाथ जाएगा । फिर मां के पास आने या मिलने के लिए कोई कारण, काम
या बहाना चाहिए क्या, बिल्कुल नहीं। चाहिए तो केवल
भाव, श्रद्धा, इच्छा
। जो जितना भाव विभोर होकर आया उतना ही अच्छा वर या फल पा गया । अनेक भक्तों ने
मातृ-कृपा के अनेकानेक रोचक, रोमांचक एवं
चमत्कारपूर्ण तथ्यों का वर्णन यत्र-तत्र किया है । अपने अनुभवों से अपने मित्रों
एवं प्रियजनों को आनंदित किया है ।
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