लाल मुर्गा
सूर्यास्त के समय अचानक बढा उमस
का आधिपत्य दो घण्टे बाद कुछ कम हुआ। वेदु नहाने के लिए उठ कर स्नानागार की तरफ
बढा ही था, तभी द्वार-घंटी बजने लगी और उसके साथ
ही घर में गायत्री मंत्र की स्वर लहरी भी गूंज उठी । गुसलखाने की बजाय वेदु मुख्य
द्वार की तरफ मुडा और दरवाजे की चिटकनी नीचे सरकाकर किवाड खोलने लगा । अधखुले किवाड
से उसने देखा सामने विद्या के साथ एक आदमी और भी खडा था ।
उन दोनों ने मुस्कराते
हुए हाथ जोडकर *नमस्ते गुरूजी* बोला तो वेदु ने
*हरि ऊं* कह कर एक गहरा सांस लिया । दरवाजा खोल कर
वापस अंदर आते हुए बोला – अंदर आ जाओ । सुखासन में दीवान पर बैठते
हुए उत्तराभिमुख कुर्सियों की तरफ बायां हाथ करके उसने दोनों को बैठने का इशारा किया
। विद्या दीवान के साथ लगती कुर्सी पर विराजमान हो गया और उसके पीछे-पीछे कमरे में
प्रवेश करने वाला आदमी उसके साथ रखी दूसरी कुर्सी पर ऐसे पसर गया मानों घंटाभर दौड
कर आया हो। उत्सुकताभरी नजरों से वेदु ने विद्या के नेत्रों में झांका ।
झांकने का प्रयोजन समझ विद्या ने
अपने साथी का परिचय कराते वक्त कहा- गुरूजी, ये सरदार सिंह
है, जहां पहले मैं काम करता था वहीं काम करता है, करीब एक
साल से यह बडा दु:खी तथा परेशान है ।
उसने एक लम्बा सांस लिया और वह उम्मीदभरी
आंखों से अपलक वेदु को देखने लगा।
वेदु तब तक कम्प्यूटर आन कर चुका था । पी.एल.6.1 पर डबल क्लिक किया
और प्रश्न चार्ट के लिए तत्काल समय फीड करके इंटर मारा । कम्प्यूटर की स्क्रीन
पर अब प्रश्न कुण्डली उसके सामने थी । लग्नेश दूषित था । उस पर दृष्टि डालने वाले
दूषित शनि को देखा जोकि वृश्चिक नवांश में निधनांशायुक्त: था । उसने अपने पच्चीस
वर्षीय अनुभव का लाभ उठाया । बोला – उबड़-खाबड़ जमीन
का मामला है और पैसा गया खड़डे में ।
सरदार सिंह की आंखों में आश्चर्य
से चमक जाग उठी । उसने तुरंत हामी भरी । उसकी मोटी काली आंखों में लगातार चमक उभरने
लगी । एकदम सचेत-सा हुआ। उसे लगा कुछ तो बात बनेगी ।
हाथ जोड़ कर बोला – गुरुजी, मेरे पर
मेहर करो । मैं तो बरबाद हुआ पड़ा हूं । जमा धरती में हाथ लग गए । कहते वक्त उसका
गला रुंध आया और आंखें भर आई ।
वेदु समझ गया कि उसकी पूरी बात सुने
बिना उसे प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता । उससे बोला – सरदार
सिंह, पूरी बात बताओ कि क्या हुआ और कैसे हुआ ।
आंसू गटकते हुए उसने कहना शुरू किया – गरीबी
में फटेहाल हम तीन दोस्तों ने अपने बुरे दिन दूर करने के लिए कई काम एक साथ शुरू किए
पर सब के सब बेकार ही साबित हुए । इसी उधेडबुन में एक दिन एक बाबा से मुलाकात हुई ।
रोमू, मैं और कुलबीर हम तीनों दोस्त एक साथ थे । बाबा बोला-
एक साथ रह कर काम करोगे तो तीनों की गरीबी दूर हो सकती है ।
कुलबीर ने हाथ जोड
कर पूछा – हमें क्या करना होगा और कैसे, बताओ बाबा
। हम तीनों मिलकर एक साथ ही काम करेंगे, बस गरीबी से किसी
तरह पीछा छूट जाए। बहुत दु:ख देख चुके हैं अब तक । मेहरबानी करो बाबा । रोमू भी अपने
दयनीय हालातों का रोना रोने लगा तथा मैं भी । तीनों रूंधे गले एवं आशाभरी निगाहों से
बाबा के चेहरे को ताकने लगे ।
बाबा के शांत चेहरे पर दया के भाव उभरने लगे । हम तीनों एकदम स्थिर
और मौन हो गए थे । एकाग्रतापूर्ण मनोवेग से तीनों की नजरें बाबा के मुख-मुण्डल पर
टिक गई । बाबा दृढतापूर्वक बोला – अब मैं
जो कहता हूं उसे घ्यान से सनो । कल दोपहर को एक जवान लालमुर्गा लेकर आओं । उसके माध्यम
से तुम्हारा भाग्य बदल सकता है । अब जाओ ।
बाबा का धन्यवाद
करते हुए तीनों मित्र उठे और मन में आशा संजोए चले गए । एक साथ मीट मण्डी गए । कई
ठिकानों पर देखने के बाद एक कसाई के यहां उन्होंने एक स्वस्थ जवान मुर्गा पसंद किया
। उसकी उमर पूछी । मोल-भाव तय किया । साई के तौर पर कुछ पैसे उसके मालिक को देकर अगले
दिन सुबह मुर्गा ले जाने की कही तथा उसके बाद अपने-अपने घरों को निकल गए । अगले रोज
तीनों उसी कसाई के यहां मिले । उसका हिसाब नक्की किया । मुर्गा लिया । करोडों की लाटरी
की तरह संभाल कर उसे बाबा के पास ले गए । तब तक सूरज भी सिर पर चढ आया था ।
तीनों बाबा के इर्द-गिर्द पैतालीस, नब्बे और पैंतालीस
डिग्री पर बैठ गए। चारों ओर से मुर्गे को बीच में लेकर उसे बाबा के सामने खडा कर दिया
।
बाबा ने आखें बंद करके कुछ बुदबुदाना
शुरू किया और साथ-साथ उसके सिर पर अपना हाथ फेरना चालू किया । रोमू ने इशारे से बताया
कि बाबा कोई मंत्र पढ रहा है ।
सुर्ख मुर्गे के
सिर पर हाथ फेरते-फेरते कुछ देर बाद बाबा आंखें बन्द रखते हुए कहने लगा - इसे ले जाकर
कहीं भी छोड दो । करीब आधे घण्टे के बाद जहां ये मुर्गा बैठेगा, वहां नीचे
खजाना दबा हुआ मिलेगा । वह जमीन जिस किसी की भी हो, खरीद कर कुआं के
रूप में खुदवाई का काम शुरू करवाओ । खुदाई सोलह फुट होने के बाद एक चितकबरा सांप निकलेगा
। उससे किसी तरह की कोई भी छेडखानी मत करना । हाथ जोडकर भगवान का ध्यान करना । दो
मिनट के अंदर-अंदर वह खुद-बखुद चला जाएगा । कहां गया ये नहीं जान पाओगे । फिर चार फुट
और खुदाई के बाद उत्तर दिशा की ओर एक दरवाजा दिखाई देगा जिस पर एक जंगखाया रोपडिया
ताला लगा हुआ मिलेगा । दरवाजे के आगे की सारी मिटटी हटाए बिना दरवाजा खुलने या टूटने
वाला नहीं है । ताले को तोडकर दरवाजा अंदर की तरफ खुलेगा और वहीं पर खजाना मिलेगा ।
यह घ्यान रखना एक या दो आदमी उसे नहीं निकाल सकते, तीन ही आदमी निकाल
सकते हैं ।
आंखें गडाए तीनों
सुनते जा रहे थे । फिर बाबा चुप हो गया । तीनों ने एक साथ बाबा के हाथ से मुर्गा पकड
लिया ।
सरदार ने आगे कहा
- कुछ खास बातों का गंभीरता से विचार करके नेशनल हाईवे नम्बर 22 पर आकर
हमने मुर्गा छोड दिया । मेन रोड से पूर्व की दिशा में दो किल्ले पार करके मुर्गा तीसरे
किल्ले में इधर-उधर कुछ देर चक्कर काटने के बाद एक स्थान पर बैठ गया। हमने वहीं
पर उसको पकड़ा और उस खास जगह पर मिट्टी के दो तीन ढेले और आस-पास से ढूंढकर तीन चार
ईंट के टुकड़े रख दिए। हमने उस जमीन के मालिक के बारे में पता किया तथा उसके बदले में
कहीं और उससे महंगे दाम पर उतनी ही जमीन दिलाने का वादा किया। रोमू और कुलबीर ने जमीन
की खरीद के लिए पैसे का इन्तजाम करने के मामले में मदद करने से साफ मना कर दिया। मेरे
मन में अपनी कंगाली के दृश्यों के नक्शे और बड़े-बड़े होने लगे । मैंने अपनी पत्नी
और मां के सारे जेवर बेच डाले परंतु अब भी पैसे कम पड़ रहे थे। मैंने अपने दोस्तों
से फिर मुलाकात की और बाबा से हुई सारी बात एक बार उनको समझायी तो वे इस शर्त पर तैयार
हुए कि वे दोनों खर्च होने वाली राशि का केवल 25 प्रतशित भी मुश्किल से जुटा सकेंगे
परंतु उन्हें बराबर का हिस्सा चाहिए । मरता क्या ना करता । मैं तैयार हो गया ।
सडक के साथ वाले
पहले वाले एक किल्ले का मालिक कोई और था जिसे खरीदना हमारी मजबूरी थी। उसका स्वामी
सामान्य से डयोढे दाम पर हमें जमीन बेचने को तैयार हुआ । उसके लिए मुझे बैंक से अपना
घर गिरवी रख कर लोन लेना पडा । कुल मिलाकर वह विशेष जमीन खरीद ली गई तथा स्थान विशेष
पर बाबा के बताए अनुसार कुंआ खोदने का काम मशीन के माध्यम से शुरू कर दिया ।
खुदाई के काम में
हम तीनों ने बराबर खर्च और समय दिया। बाबा के कहे अनुसार सोलह फुट का कुंआ खुदने के
बाद जब हम तीनों उसके अन्दर थे, अचानक एक सांप निकल आया जिसकी लम्बाई लगभग
छ: फुट थी और मोटाई हमारी बाजू जैसी। उसे देखकर एक बार तो तीनों का डर के मारे रंग
उड़ गया। जैसे ही हमें बाबा की बात याद आई हम तीनों जहां-जहां थे वहां के वहां खड़े
हो गए और हाथ जोड़कर अपने-अपने ईष्ट को याद करने लगे। उसकी शक्ल, लंबाई
और फुफकार से भयभीत हम तीनों ने आंखे बन्द कर ली थी । मुश्किल से एक मिनट बीता होगा
हमने आंखें खोलकर देखा तो बाबा की कही हुई बात सच निकली और सांप वहां से गायब था ।
हमारी जान में जान आई और सबने एक-दूसरे को प्रसन्नतापूर्वक देखा और तीनों आपस में
गले मिले। हमारी योजना का एक बड़ा हिस्सा पूरा और सही हो चुका था परंतु तब तक कुंए
में गहरा अन्धेरा छा गया था। हम लोग रस्से के सहारे बाहर निकले और अपने-अपने घरों
को चले गए।
अगले दिन आगे काम शुरू किया गया और दो दिन की जद्दोजहद के बाद चार
फुट की खुदाई पूरी हुई, तभी उत्तर की दिशा में एक पत्थर की चौखट
और उसके मध्य में चैन वाले कुंडे पर जंगखाया हुआ एक रोपडिया ताला नजर आया।
हम तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा
और ताले पर जमीं हुई मिट्टी उतारी। सबके मन में खुशी की लहर सी दौड़ गई। यहां तक बाबा
की कही हुई बात सही साबित हुई। अब पूरे दरवाजे के सामने से मिट्टी हटाने के लिए और
खुदाई करनी बाकी थी।
अगले तीन दिनों में हम तीनों ने खूब
मेहनत की और जैसे-तैसे पूरे दरवाजे के सामने से मिट्टी हटाने और निकालने में कामयाब
हो गए। इतना होने पर हमने ऊपर आकाश की ओर देखा तो आकाश में टिमटिमाते हुए तारे जोर-शोर
से चमक रहे थे, मानों हमारी खुशी में शामिल हो रहे हों। हम तीनों ने
एक-दूसरे को उस दिन तक प्राप्त की गई सफलता पर बधाई दी और अधिक रात हो जाने के कारण
शेष कार्य अगले दिन करने का निर्णय लिया।
घने अंधकार में कुंए से बाहर निकलकर
अंधेरे को चीरते हुए हम लोग इस वायदे के साथ अपने-अपने घरों को रवाना हुए कि अगली सुबह
तीनों एक-साथ ही आएंगे जैसे उस दिन तक आते रहे थे।
उस रात एक अजीब-सी खुशी पाने की भावना से भरे होने के कारण मैं सो
नहीं सका। बार-बार मन में विचार उठता रहा कि कुंए से हमें कुल कितना खजाना मिलेगा और
उसमें से खर्च की रकम निकालकर मेरे हिस्से में कितना आएगा तथा उससे मैं भविष्य में
क्या-क्या करूंगा। अनेक सुखद ख्वाबों की एक लम्बी फेहरिस्त बनती जा रही थी । ऐसे
ही ख्यालों में भोर का तारा दिखाई देने लगा। और दिनों की अपेक्षा उस दिन नाश्ता करने
की भी इच्छा नहीं थी। मन एक अजीब-सी खुशी से भरा जा रहा था।
सरदार अपनी व्यथा-कथा कहे जा रहा
था । पहले के दिनों की तरह उस दिन भी दोनों साथी सूर्योदय से पहले मेरे पास आए। रोज
की ही तरह अकेले-अकेले ही उनका आना हुआ। उन दोनों के चेहरों पर भी मेरी ही तरह खुशी
थी और उनकी आंखों में भी मेरी तरह रातभर जागने का आलस और धन प्राप्ति की चमक दिखाई
दे रही थी। हम तीनों एक साथ कुंए पर पहुंचे वहां जाकर रस्से के सहारे कुंए में उतरे
तो जो दृश्य हमने देखा उसने हमारी सारी खुशियां उड़ा दीं। रोपडिया ताला कुंए की दीवार
के पास टूटा पड़ा था और दरवाजा कुंए की अन्दर की बजाय जहां वह खड़ा था उससे अन्दर
की तरफ टूटा हुआ पड़ा था। जहां बाबा ने खजाना होने की बात कही थी वहां मौजूद पुराने
मटके के ठीकरे हमारी तौहीन कर रहे थे। हमारे हाथों के तोते उड़ गए क्योंकि खजाना तो
वहां से गायब था। हम तीनों ने अविश्वास की नजर से एक-दूसरे को देखा और एक-दूसरे को
अपराधी भाव से गालियां देनी शुरू कर दी।
तीनों ने भगवान की सौंगध खाकर परस्पर
आश्वासन दिया कि उनमें से भी कोई वहां तक नहीं आया था । क्योंकि हम तीनों के अतिरिक्त
किसी को इस मामले में कोई जानकारी नहीं थी इसलिए किसी ओर द्वारा धन निकालकर ले जाने
की बात भी हम में से किसी के गले के नीचे नहीं उतर रही थी। काफी देर बाद आपस में गाली-गलौच
और तू-तड़क करने के बाद हम तीनों इस निर्णय पर पहुंचे कि आपस में झगडने की बजाय क्यों
न हम तीनों उक साथ बाबा के पास जाएं और उससे ही पता लगाएं।
वहां से सीधे तीनों दोस्त बाबा के पास पहुंचे। बाबा पहले दिन की
तरह उस दिन भी अकेला ही बैठा था। हम तीनों ने बाबा को प्रणाम किया और उसके सामने जमीन
पर बैठने लगे। बाबा हमारी उतरी हुई शक्ल देखकर समझ गया कि गड़बड़ है। हमने बाबा को
सारी कहानी बताई बाबा चुपचाप हमारी बात सुनता रहा । जब हम तीनों अपना दुखड़ा रो चुके
तो बाबा ने मुंह खोला।
बाबा के चेहरे पर
क्रोध साफ दिखाई दे रहा था। बाबा बोला- ‘तुम दुष्टों में
से किसने विश्वासघात किया है, यह मैं नहीं बताऊंगा और आइन्दा कभी मेरे
पास नहीं आना। उसने मुंह फेर लिया । उसने कोई बात करने से भी मना कर दिया ।
उसके बाद हम तीनों
में आपस में बैरभाव बहुत बढ़ता चला गया । तीनों एक-दूसरे की जान लेने पर आमादा हैं।
क्योंकि पहले जैसा व्यवहार नहीं रहा इसलिए बाबा भी इस मामले में अब कुछ नहीं बोलता।
थोडा-सा रुक कर
उसने दो तीन लम्बे सांस खींचे । फिर बोला- मेरे विचार से मामला तब ही ठीक हो सकता
है जब हम तीनों आपस में मित्रभाव से बैठकर
बात करें और फिर से एक बार उस बाबा की शरण में जाएं तथा बाबा नाराजगी छोड़कर शान्त
भाव से हमारी बात सुनकर अपना निर्णय तीनों के सामने सुनाए।
वेदु और विद्या ने सरदार सिंह की पूरी कहानी इतमिनान से सुनी। वेदु
ने उसे पूछा- ‘मुझसे क्या उम्मीद रखते हो।‘
उसने कहा- ‘आप कोई
ऐसा उपाय बता दें जिससे हम सबके मन का मैल धुल जाए और वह बाबा आशीर्वाद का हाथ हमारे
सिर पर रख दे।‘
वेदु ने तन्मयता
और संयम सहित गायत्री मंत्र का जाप करने और काली गाय को नियमित गुड़ खिलाने की सलाह
दी।
वे दोनों वेदु को
प्रणाम करके चले गए और सरदार सिंह अब तक वापस नहीं आया । आपकी तरह वेदु भी जानने का
इच्छुक है कि सरदार सिंह एक बार सामने आकर बताए तो सही कि उपाय कितना असरदार रहा ।
दिनांक 14.05.2013 सुरेश कुमार कौशिक