जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे. करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा ओम जय जगदीश, स्वामी जय जगदीश हरे |
This is the personal web space of Pt. Suresh Kaushik. Astrology is his favourite hobby. Many famous astrologers of Chandigarh are his students. He is fond of Horticulture and history. Religion and Spirituality is the main strength of life.
Tuesday, 15 November 2011
Arti : Om Jai Jagdish Hare
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