Thursday, 21 March 2013

आध्‍यात्मिक उड़ान


    आध्‍यात्मिक उड़ान        

शिशुसुलभ आशा कुलबुलाई है आज फिर
पारिवारिक घोंसले में उभरते प्रयोगकर्ता की
पक्षी शावक-सी आध्‍यात्मिक उडान भरने को ।

प्रवृत्तियों के खांचे में उठा-पटक है
वाकप्रवाह भी अभी खंडित नहीं है और जारी है अनवरत
मूढ़ता की राख में निज विचाररत्‍नों को फैंकना
फिर ईश्‍वरत्‍व में मनुष्‍यत्‍व का मिलन संभव कैसे ?

तुमुल मचाती भावनाएं हैं बहुतेरी
स्‍वार्थ सिंचित पाषाणहृदय में मेरे
कैसे उठे फिर उत्‍कंठापूर्ण कदम,
रात्रिकालीन विश्रृंखल ध्‍यान लगे कैसे ?

शब्‍द-प्रयोजन हो जाए निकृष्‍टतम
शंकाव्‍यथित-संशयात्‍मा रम जाए नि:शब्‍दता की एकता में
स्‍मृतियों का हो मधुर अरुणोदय
भावोत्‍कटता प्रकट करने में अनभिज्ञ-से हैं अधर मेरे
कालचक्र पर चक्राकार घूमते दृश्‍य हों जैसे ।

उत्‍कट प्रार्थना जागेगी जब
अवचेतन प्रत्‍याशानुसार स्‍वास्‍थ्‍य परिवर्तन भी होंगे
मेरुदण्‍ड और षट्चक्रों में अवश्‍य
किंतु अंतर्दर्शी या अल्‍पदर्शी आत्‍मतृप्ति का भाव उठे कैसे ?

त्‍याग चाहिए संदिग्‍ध मनोनुकूल निर्णय संग असंगत अपेक्षा का भी
नकारने होंगे भिक्षाजीवी गुरु किवां कतरब्‍यौंत की दृढ़ प्रवृत्ति
छोड़नी ही पड़ेगी मानसिक ऐंठन, संकीर्ण वृत्ति की अल्‍पतृप्ति,
ध्‍वंस करना होगा अहंकार के आंतरिक दुर्गों को, पर कैसे ?

जानता हूं मानवी अनुरक्ति की भावना में
सौजन्‍ययुक्‍त स्‍पष्‍टवादिता ही कल्‍याणप्रद है,
देनी होगी कलंक-कलुषित विगत जीवन को तिलांजलि
तजनी होगी मुझे परछिद्रान्‍वेशी नीतिनिष्‍णातों की मंडली,

अभ्‍यासरत चलते हुए दैवी कृपा की विशिष्‍ट स्‍मृतियों का उदय होगा
और थम जाएगा तब रक्‍तपिपासु उत्‍सवों का आयोजन,
आश्‍चर्य से हतप्रभ होंगे निकटवर्ती प्राणदण्‍ड
होगा एक दिन सृजनात्‍मक मौलिकता का परिचय ऐसे ।

जन्‍मेंगी इष्‍ट कृपा की कृतज्ञतापूर्ण स्‍मृतियां,
इष्‍ट के ही जीवंत विग्रह के सान्निध्‍य में,
स्‍फुल्लिंग है मानव मन तो ईश्‍वर के सर्वशक्तिमान चैतन्‍य का 
और मिटेगी निश्‍चय ही बाह्य आध्‍यात्मिक साधना ऐसे ।    

सुरेश कुमार कौशिक
* माघी पूर्णिमा, वि.सं.2069(25.02.2013)